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    उपायुक्त

    भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश के महान कवि सुब्रमण्य भारती ने कहा था कि सच्ची आजादी हासिल करने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं। पहली शिक्षा, दूसरी शिक्षा और तीसरी भी शिक्षा। नालंदा और तक्षशिला से लेकर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था तक भारत की हजारों साल पुरानी परंपरा और संस्कृति ने हमेशा शिक्षा को एक ऐसे साधन के रूप में स्वीकार किया है जिसके जरिए मनुष्य खुद को सामाजिक, सभ्य और मानवीय बनाता है। केंद्रीय विद्यालय संगठन भारत की इसी गहरी परंपरा का पथ प्रदर्शक है, जो शिक्षा के क्षेत्र में सदियों पुरानी परंपराओं को आत्मसात करते हुए आधुनिक युग के शैक्षिक नवाचारों से देश की नई पीढ़ी के निर्माण का जिम्मेदाराना कार्य सफलतापूर्वक कर रहा है। देश की नींव को मजबूत और सुसंगत बनाने की इस तपस्या को सार्थक करने वाले असंख्य शिक्षक संगठन का गौरव और गौरव हैं। आइए, हम कबीर की इस उक्ति को एक चेतावनी के रूप में लें और अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ें ताकि हमारे विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो सके तथा देश और समाज उत्तरोत्तर प्रगति कर सके।